शनिवार, 29 सितंबर 2007

पत्रकारों की सजा पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

'मीडिया की आजादी को कुचलने से बाज आए सरकार'
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मिड-डे के चार पत्रकारों को सुनाई गई सजा पर रोक लगा दी। पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाई के सब्बरवाल के खिलाफ कथित मानहानि संबंधी रिपोर्ट लिखे जाने के आरोप में चारों पत्रकार को चार महीने जेल की सजा सुनाई गई थी।
न्यायाधीश अरिजीत पसायत और पी सतशिवम ने समाचार पत्र की ओर से दायर अपील को स्वीकार करते हुए चारों पत्रकारों को सुनाई गई सजा पर रोक लगा दी। याचिका में 21 सितंबर को दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से सुनाई गई सजा को चुनौती दी गई थी।
न्यायालय ने 27 प्रबुद्ध नागरिकों की ओर से मामले की सुनवाई के संबंध में अपनी बातों को रखे जाने का मौका दिए जाने के अनुरोध को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता का इस मामले में हस्तक्षेप का कोई औचित्य नहीं बनता, क्योंकि सवाल यह है कि क्या पत्रकारों ने अवमानना किया है या नहीं। पीठ ने यह ऐलान किया कि वह मामले में न्यायालय की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व अतिरिक्त सोलिसीटर जनरल ए आर अंधियार्जुन को नियुक्त कर रही है।
न्यायालय में बृहस्पतिवार को 27 प्रबुद्घ नागरिकों ने याचिका दायर कर यह अनुरोध किया था कि उन्हें भी वही सजा दी जाए जो मिड-डे के पत्रकारों को पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाई के सब्बरवाल के खिलाफ कथित अपमानजनक रिपोर्ट लिखने के आरोप में सुनाई गई है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार चार पत्रकारों को सुनाई गई सजा न केवल अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है बल्कि इस फैसले ने लोगों को एक गलत संदेश भी दिया है। याचिका में दावा किया गया है कि हाईकोर्ट का रुख गणतंत्रात्मक लोकतंत्र और संविधान के मूल सिद्धांत के तहत भ्रामक और गलत है। अपने आवेदन में उन्होंने न्यायालय से अनुरोध किया कि उन्हें भी वही सजा दी जाए जो मिड-डे के पत्रकारों को सुनाई गई है।

याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों में मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविंद केजरीवाल, पूर्व नौकरशाह हर्ष मांदेर, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी के एस सुब्रम्ण्यम, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एस पी शुक्ल, अमित भादुरी, प्रो. अरुण कुमार जैसे व्यक्ति शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 19 सितंबर को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा पूर्व मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ लेख प्रकाशित करने के आरोप में समाचार पत्र के चार पत्रकारों के खिलाफ शुरू किए गए अवमानना मामले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।

हाईकोर्ट ने 11 सितंबर को मिड-डे के संपादक एम के तयाल, तत्कालीन प्रकाशक एस के अख्तर, स्थानीय संपादक वितुशा ओबेराय और कार्टूनिस्ट इरफान को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था।

सजा सुनाए जाने के खिलाफ शीर्ष अदालत में दाखिल विशेष अनुमति याचिका में पत्रकारों ने कहा था कि हाईकोर्ट का आदेश अतार्किक है और इसे न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।

याचिका में कहा गया है कि रिपोर्ट वृत्ता चित्र के आधार पर लिखी गई थी। इस पर कुछ पूर्व मुख्य न्यायाधीशों का कहना था कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश सब्बरवाल के खिलाफ जो आरोप लगे हैं उसकी न्यायिक जांच कराई जानी चाहिए।

विवादास्पद रिपोर्ट 18 मई को प्रकाशित की गई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि न्यायमूर्ति सब्बरवाल ने सीलिंग के संबंध में आदेश अपने बेटे को फायदा पहुंचाने के लिए दिया था। न्यायमूर्ति सब्बरवाल का बेटा रियल स्टेट के कारोबार से संबद्ध है। साभार- जागरण हिन्दी दैनिक

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