पिछले दिनों न्यायिक जवाबदेह समिति ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश
वाई के सभरवाल को एक पत्र लिखा था कि
जज जगदीश भल्ला की पत्नी रेनू भल्ला ने नोएडा में जो जमीन खरीदी है, उसकी स्वतंत्र जांच कराई जाए।
यह जमीन पांच लाख में खरीदी गई, जबकि मामले की जांच कर रहे एसडीएम और एडीएम नोएडा ने इसकी कीमत करीब सात करोड़ बताई है। इसके बावजू
द बिना जांच के जगदीश भल्ला को केरल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश नियुक्त करने की संस्तुति कर दी गई। हमारी जानकारी के मुताबिक सरकार ने आईबी से जांच कराई, जिसकी रिपोर्ट भी भल्ला के खिलाफ थी। इसी रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रपति ने जगदीश भल्ला को केरल का मुख्य न्यायधीश नियुक्त करने की संस्तुति पर केंद्र से पुनर्विचार करने को कहा था। 'ये पंक्तियां उस पत्र की हैं जो पूर्व विधिमंत्री शांति भूषण ने मुख्य न्यायधीश के जी बालकृष्णन को 20 मार्च को लिखा। न्यायिक जवाबदेह समिति ने इस मसले पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी पत्र लिखा। इतने पर भी जगदीश भल्ला के नाम की संस्तुति छत्तीसगढ़ के मुख्य न्यायधीश पद के लिए दी गई। सवाल यह उठता है कि आरोप दर आरोप के बाद भी उन्हें मुख्य न्यायधीश बनाने की संस्तुति कैसे की जाती रही?
न्यायधीश वाई के सभरवाल का तर्क था कि इन आरोपों के संदर्भ में इलाहाबाद के बार एसोसिएशन के नेताओं और वकीलों से बात की गई, जिन्होंने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया।
सभरवाल के इस तर्क को कपिल सिब्बल के आरोपों के आइने में देखा जाना चाहिए।
सिब्बल ने 29 अप्रैल को मुलायम सिंह यादव पर विशेषाधिकार का दुरुपयोग कर कुछ खास लोगों को नोएडा में भूमि आबंटित कर उपकृत करने का आरोप लगाया था। मुलायम से जमीन का तोहफा लेने वालों में जो नाम सिब्बल ने गिनाए उनमें न्यायमूर्ति सभरवाल की बेटी शीबा सभरवाल भी हैं। इसके अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायधीश सुबोध श्रीवास्तव की रिश्तेदार पूनम श्रीवास्तव और इलाहाबाद के ही न्यायधीश उदय कृष्ण धाओन शामिल हैं। इन नामों में जगदीश भल्ला के पुत्र आरोही भल्ला भी हैं। नोएडा मे भूमि का आवंटन 2005 में हुआ था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाद में इन आवंटनों को रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश भी दिए थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच संबंधी हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। न्यायमूर्ति सभरवाल के ही कार्यकाल में सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद सीलिंग जारी रही। इसी सीलिंग के कारण नगर निगम चुनावों में कांग्रेस खेत रही। गौरतलब है कि तीन सदस्यीय जिस कोलेजियम ने जगदीश भल्ला को तमाम आरोपों के बावजूद मुख्य न्यायाधीश पद देने की संस्तुति की उसमें वाई के सभरवाल भी थे।
न्यायिक जवाबदेह समिति की तरफ से इस पूरे मामले को उठाने वाले पूर्व विधिमंत्री शांति भूषण कहते हैं कि '
दरअसल विधिमंत्री हंसराज भारद्वाज, जगदीश भल्ला की तरफदारी कर रहे हैं। भारद्वाज अब यह प्रयास कर रहे हैं कि छत्तीसगढ़ के मुख्य न्यायाधीश को केरल भेज दिया जाए, जिससे भल्ला को वहां का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश बनाया जा सके।' शांति भूषण कहते हैं कि हंसराज भारद्वाज और भल्ला के लड़के साथ- साथ वकालत करते हैं इसलिए आरोपों पर पर्दा डाला जा रहा है।
जगदीश भल्ला पर लगे आरोपों पर जरा गौर फरमाइए। 28 मार्च 2005 को गौतमबुध्द नगर (नोएडा) के पुलिस उपाधीक्षक उदय शंकर ने जिलाधिकारी को एक पत्र लिखा। पुलिस उपाधीक्षक उदयशंकर मोती गोयल और नौ अन्य मामलों की विवेचना कर रहे थे। यह पत्र भी उसी विवेचना से संबंधित था। पत्र में जो कुछ लिखा गया, वह चौंकाने वाला था।
इसमें गलत तरीके से कुछ प्रभावशाली लोगों को जमीन उपलब्ध कराए जाने की बात कहीं गई। रेनू भल्ला जगदीश भल्ला की पत्नी हैं। जगदीश भल्ला उस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज थे। लेकिन यहां रेनू भल्ला का परिचय के. के. भल्ला की पुत्री के रूप में कराया गया। जमीन के इस गोरखधंधे का मुख्य सूत्रधार मोती गोयल था। ग्राम सभा की जमीन को मोती गोयल ने राजस्व रिकार्ड में हेराफेरी करके बेचा। मोती गोयल का यह पहला कारनामा नहीं था। उसने नोएडा में हजारों करोड़ की जमीन फर्जीवाड़ा किया है। वह राजस्व विभाग के अधिकारियों की मदद से शामलात भूमि पर फर्जी नाम दर्ज कराकर बेचता था। उसके इस काम में कई प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल होते थे। ऐसे ही अधिकारियों की छत्रछाया में वह पलता और बढ़ता रहा। एक मामले में तो दो अधिकारी निलंबित भी हो चुके हैं। इस मामले का खुलासा तब हुआ जब मोती गोयल ने पूर्व मंत्री रामपाल सिंह को भी फर्जी तरीके से जमीन बेची।
रामपाल की शिकायत पर मोती गोयल के खास आदमी महावीर को गिरफ्तार किया गया। महावीर की गिरफ्तारी के बाद परद दर परत मामला खुलता गया।
पुलिस उपाधीक्षक उदय शंकर के पत्र पर जिलाधिकारी ने उप जिलाधिकारी सदर को तथ्यों के परीक्षण के लिए लिखा। उप जिलाधिकारी ने अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी को 21 जून 2005 को सौंपी। इस रिपोर्ट में रेनू भल्ला और भू-माफिया की सांठ- गांठ को दर्शाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक ग्राम शाहपुर गोवर्धनपुर खादर में भू-माफिया मोती गोयल, उसकी पत्नी बीना गोयल, चरन सिंह, हरीश नागर, जितेंद्र माहेश्वरी से भूमि खरीदने वाले लोगों में रेनू भल्ला (पुत्री के. के. भल्ला निवासी 36 उदय पार्क, द्वितीय फ्लोर, नई दिल्ली) भी थीं। यह भूमि उन्होंने काफी सस्ते में खरीदी।
रेनू भल्ला पुत्री के. के. भल्ला को हरीश नागर पुत्र चरन सिंह ने 4000 वर्ग मीटर जमीन बेची, जिसकी कीमत 2002 में चार लाख ली गई। हालांकि, यह जमीन नोएडा एक्सप्रेस- वे के किनारे सेक्टर- 132 के पास है। रिपोर्ट में ही कहा गया है कि इस जमीन की वास्तविक कीमत दस हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर रही होगी। आज यहां 15 से 18 हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से जमीन बिक रही है।
इन्हीं रिपोर्टों की तस्दीक अपर जिला अधिकारी राजेश कुमार की एक रिपोर्ट भी करती है। अपर जिला अधिकारी इससे संबंधित एक अन्य मामले की जांच कर रहे थे जो जिलाधिकारी को सौंपी गई थी। उनकी रिपोर्ट में भी रेनू भल्ला और भू- माफियाओं के गठजोड़ को उजागर किया गया है। अपर जिलाधिकारी की रिपोर्ट कहती है- 'ताज एक्सप्रेस एलायमेंट मार्च 2003 में फाइनल होने के फलस्वरूप इस ग्राम की अधिकांश भूमि का हस्तांतरण टुकड़ों में किया गया है। तत्समय यह भूमि राज्य सरकार में निहित होनी चाहिए थी, लेकिन दाखिल खारिज करने वाले न्यायालयों ने बजाय धारा 166/167 यूपी जमींदारी अधिनियम 1951 के तहत भूमि राज्य सरकार में निहित करने की व्यवस्था देने के, अदम पैरवी में खारिज कर खरीददारों को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुंचाया।' खरीददारों में रेनू भल्ला भी थीं। सवाल उठता है कि कि भू- माफिया ने रेनू भल्ला को इतनी सस्ती जमीन क्यों दे दी? खरिज दाखिल न्यायालय में भी काफी मेहरबान रहा। यह भी सवाल बरकरार है कि
इसकी एवज में आखिर भू- माफिया का क्या काम हुआ होगा? न्यायमूर्ति जगदीश भल्ला पर रिलायंस एनर्जी के एक मामले में भी दायरे से बाहर जाकर देखने का आरोप है। उस मामले में भी सवाल उठे थे कि आखिर उसमें न्यायमूर्ति भल्ला क्यों रुचि ले रहे हैं?बहरहाल, घपले के छींटे सीधे जगदीश भल्ला पर भी पड़े। गोमती नगर लखनऊ में भू-खंडों के आवंटन में भी जगदीश भल्ला को नियम के विपरीत विशेष परिस्थितियों में भू-खंड आवंटित किया गया। आरोपों का खुलासा एक पत्र से होता है। यह पत्र सुमित कुमार की तरफ से निखिल श्रीवास्तव ने सचिव लोकायुक्त ज्ञानचंद्रा को 22/7/005 को लिखा। पत्र में सुमित कुमार ने ए-5/25 विनीत खण्ड, गोमती नगर की भूमि को लेकर लिखा था। उन्होंने इस पत्र में दावा किया है कि उन्हें फर्जी तरीके से डिफाल्टर घोषित किया गया, जबकि 5 सितंबर 2003 को लखनऊ विकास प्राधिकरण सुमित सिंह के पक्ष में रजिस्ट्री करने को तैयार था। इस मामले में सचिव लोकायुक्त ने सचिव लोकायुक्त प्रशासन को पत्र लिखकर भू-खंड संख्या ए-5/25 विनीत खण्ड की रजिस्ट्री की कार्यवाही स्थगित करने को कहा, क्योंकि इस मामले की जांच लोकायुक्त कर रहे थे। जिस भू-खंड का यह मामला है उसका संबंध जगदीश भल्ला से भी है। 23 सितंबर 2003 को 25 हजार रुपए जमा कराकर पंजीकरण कराया गया। यह पंजीकरण धनराशि 'ए' प्रकार के भू-खंड के आवंटन के लिए पर्याप्त नहीं है। 24 सितंबर 2003 को विशेष परिस्थितियों में उपाध्यक्ष ने 'ए' प्रकार का भूखंड संख्या ए-5/410 विराज खण्ड में आवंटित किया। फिर न्यायमूर्ति जगदीश भल्ला के पीए मोइनुल हसन ने 2 नवंबर को एक पत्र लिखा। पत्र के क्रम में 4 नवंबर को भू-खंड नंबर ए-5/25 विनीत खंड में बिना किसी शुल्क परिवर्तित और समायोजित कर दिया।
न्यायमूर्ति भल्ला को विशाल खण्ड में भी भूमि आवंटित है। विशाल खंड में जब भू-खंड आवंटित किया गया तब उत्तर प्रदेश शासन के स्थायी अधिवक्ता थे, जबकि प्राधिकरण एक व्यक्ति को एक ही भू-खंड का आवंटन करता है। जगदीश भल्ला को विशेष परिस्थितियों में दूसरा आवंटन भी किया गया। आखिर जज साहब को कितने भू-खण्ड चाहिए? इसी तरह उनके पुत्र आरोही भल्ला का भू-खण्ड भी बिना परिवर्तित शुल्क के विनय खण्ड में समायोजित किया गया। आरोही को पहले विराज खण्ड में भू-खण्ड संख्या 3/214 आवंटित किया गया। बाद में उनके प्रार्थना पत्र पर तत्कालीन उपाध्यक्ष ने बिना परिवर्तन शुल्क के विनय खण्ड में भू-खण्ड संख्या- 5/20 से पुन: भू-खण्ड संख्या 3/242 में बिना परिवर्तन शुल्क के परिवर्तित कर दिया गया। ऐसा भी नहीं कि लखनऊ विकास प्राधिकरण पर सिर्फ बाप और बेटे पर ही फिदा होने का आरोप है। जगदीश भल्ला की बहन मनोरमा शर्मा, बहनोई अशोक भनोट पर भी मेहरबानी करने का उस पर आरोप है।
इस पूरे मामले को 'कमेटी आन जुडिशल अकाउंटबिलिटी' ने गंभीरता से लिया। कमेटी ने तहकीकात करने के बाद जगदीश भल्ला के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करने के लिए सुप्रीम कोर्ठ के मुख्य न्यायधीश को लिखा। मामला दर्ज करने की गुजारिश करने वालों में राम जेठमलानी और राजिंदर सच्चर जैसे लोग भी शामिल थे। शांति भूषण की न
जर में यह मामला न्यायपालिका की सुचिता और पारदर्शिता को प्रभावित करेगा। इसलिए ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज कर जांच होनी चाहिए। शांति भूषण उप जिला अधिकारी और अपर जिला अधिकारी की रिपोर्ट के बाद नोएडा मामले की जांच जरूरी मानते हैं, जिसके अनुसार सात करोड़ की जमीन मात्र पांच लाख में बेची गई। यह जमीन भी ग्राम सभा की थी। भू-माफिया का किसी हाईकोर्ट के जज की पत्नी को उपकृत करना चिंता का विषय है। सीलिंग और सेज जैसे मसलों पर अदालती रुख के बाद लोग यह जानना चाहेंगे कि न्यायालय ऐसे मामलों में क्या करता है? क्या कारण है कि शांति भूषण के तमाम प्रयासों के बाद भी कोई उनकी बात पर कान नहीं धर रहा? लोग यह भी जानना चाहेंगे कि आखिर इस पूरे मामले में क्या हुआ।
शांति भूषण अपने पत्रों में इस मामले को नजर अंदाज न किए जाने का अनुरोध करते रहे, लेकिन उनकी बात अनसुनी की जाती रहीं। ऐसे मामले लोगों के लिए महत्वपूर्ण होते है। इससे लोगों में न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास की पुष्टि होती है। हर जगह से निराश होने के बाद लोग न्याय की गुहार अदालत में लगाते हैं। जिनके सामने वह गुहार लगाते हैं यदि उन पर ही घपलों, घोटालों के छींटे पड़ते हों तो उस व्यवस्था से जुड़े लोगों का चिंतित होना लाजिमी है। ऐसी स्थिति में लोग यह तो जानना ही चाहेंगे कि आखिर क्या कारण है कि 'न्यायिक जवाबदेह समिति' के पत्रों पर ध्यान नहीं दिया गया?
लोग यह भी जानना चाहेंगे ही जमीन के इस गोरखधंधे में और कौन- कौन से प्रभावशाली लोग शामिल हैं?
साभार- प्रथम प्रवक्ता